अनपढ़ औरत
जानता हूँ एक औरत को जो
अनपढ़ है
इस एक अवगुण को छोड़कर
सर्व गुण संपन है
सादगी और सुन्दरता
की मूरत है
छलकता हुआ प्रेम
कमसीन सी सूरत है
करती है सबकी सेवा
सबको है अपना माना
पर जरा सी चूक पर
देते हैं सभी उलहाना
अनपढ़ और गंवार
पर इस दोष के लिए
वह तो नहीं जिम्मेदार
स्कूल नहीं गाँव में
इसमें बदकिस्मती किसकी
माँ-बाप ने पढाया नहीं
यह नियति किसकी
हर उलहाना के बाद भी
होंठों पर नाचती है मुस्कुराहट
भूल कर भी नहीं चाहती
करना किसी को मर्माहत
मर चुकी है सारी इच्छा
पर बच्चों को अपने
पढाना चाहती है
उन्हें न दे कोई उलहाना
इस कदर बनाना चाहती है.
bahut sundar rachna
ReplyDeleteshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bhai sahab apne saral sabdon me bahut badi baat kah di hai.
ReplyDeletesundar abhivyakti.....isi tarah likhna jari rakhen
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