समूह चित्र
हर प्रयास के बाद भी
आ नहीं रहे हैं सभी लोग फ्रेम में
निरर्थक समूह चित्र की कोशिश
हर बार कुछ लोग छुट रहे हैं
यह है शायद कैमरे की मज़बूरी
या हम ही बिखर गए हैं
फ्रेम में हैं जो कुछ लोग
धक्का लगाकर आ गये हैं केंद्र में
कमजोर थे जो वो स्वयं
हट गए हैं फ्रेम से
पूरी हो जाये फ्रेम
अगर खड़े हो जाएँ
पिताजी और चाचा एक साथ
भूल जाएँ पुरानी सारी बात
बांटा जिसने एक ही आँगन को
वो रक्त रंजित बाड़ खड़ी है
फ्रेम में आ रही है वह घर भी
जो जली थी एक चिंगारी से
धधक रही थी आग
बाड़ के इस पर भी उस पार भी
पहले तो नहीं थी ऐसी कोई बात
कई चित्र हैं हमारे एक साथ
अब शायद आ गयी है समय की दूरी
या है एक साथ खड़े होने में कोई मज़बूरी